ये कौन सा सपना मचल रहा है
ये खून किसका उबल रहा है
ये किसकी सांसो में आग सी है
ये कौन गिर के संभल रहा है
ये किसके सुर हैं सीके सीके से
ये किसकी धड़कन चटक रही है
ये किसके कदमो में फौज सी है
ये कौन करवट बदल रहा है
ये कौन दरिया को पी रहा है
ये कौन सच कह कर जी रहा है
ये किसके घाव में है तरन्नुम
ये कौन लोहा पिघल रहा है
ये किसका साया है धूप जैसा
ये किसका लहू है सूप जैसा
ये किसके होंठो में हड्डियाँ हैं
ये कौन नींदों में चल रहा है
चलो टटोलूं में आज खुदको
कहीं ये गुस्ताख में तोह नही
ये हलचलें हैं मुझी में शायद
यकीं मुझे ख़ुद पे मिल रहा है
--- प्रसून जोशी
Thursday, October 2, 2008
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